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मनरेगा का मन कहीं और-Narega ka man kahi or

एक नजर इधर भी
एक नजर इधर भी
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मनरेगा में सरकार का कितना प्रतिशत मन है या नही यह साफ दिख रहा है. इस योजना को चलाने वाले लोग और इस योजना को बनाने वाले लोग दोनो ही इसे दीमक की तरह चूस रहे है. 100 दिन का रोजगार तो दूर, बहुत जगह देखा गया है कि इस योजना के बारे में लोगों को सही जानकारी तक नहीं दी गई और जो भी जानकारी दी गई है वह पूर्ण नहीं है. सरकार ने जब मनरेगा का कानून बनाया था तो उस समय इसका काफी प्रचार प्रसार हुआ था. कांग्रेस इसे अब तक का सबसे बड़ा काम बताती है और आज भी चुनावों के समय मनरेगा को एक बड़े मुद्दे के रुप में लोगों के सामने लेकर आती है. लेकिन वास्तविकता तो यह है कि यह चुनावों तक ही सीमित है पूरे साल सरकार इस पर नीतिगत विचार करने की वजाय इस पर चर्चा तक नहीं करती. इस कानुन को आए हुए 5 साल हो गए है लेकिन सरकार ने इस पर बैठकर पांच बार विचार तक नहीं किया. अगर किया होता इतनी बड़ी संख्या में पलायन की नौबन तक नही आती. आज मनरेगा को भी भ्रष्टाचार के दिमक ने जकड़ लिया है जो लाभ किसानों और मजदूरों को पहुंचना चाहिए वह लाभ सरकार और सरकार के नुमाइंदों को मिला रहा है. अगर आम जनता के दृष्टिकोण से देखे तो मनरेगा में बहुत तरह की सुधार की जरुरत है लेकिन लगता है कि सरकार इस पर गंभीर दिखाई नहीं देती.


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