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बूढ़ी हो गई भारतीय तिकड़ी

एक नजर इधर भी
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sachin dravid and laxmanभारतीय क्रिकेट की यह तिकड़ी, इन तिकड़ी पर भारतीय दर्शकों को नाज है, इस तिकड़ी की बैटिंग देखने के लिए दुनियाभर के दर्शक स्टेडियम पहुंचते हैं, यह तिकड़ी है तो हमरा मिडल ऑडर मजबूत है, तमाम इस तरह के शब्द आपने न्यूज चैनलों और क्रिकेट कमेंट्री में जरूर सुना होगा. आपके दिमाग में इस वक्त यह चल रहा होगा कि आखिरकार यह तिकडी है क्या बला. ज्यादा मत सोचिए यह तिकड़ी हमारे देश के महान बल्लेबाज हैं  सचिन, द्रविड और लक्षण के नाम से मशहूर है. यह ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होने अपने रिकोर्ड से विश्वभर में अपनी पहचान बनाई है. संकट के समय कई बार इन्होंने टीम इंडिया को पार लगाया है. जरूरत के समय रन भी बनाए हैं और अपने दर्शकों के बीच एक आदर्श पहचान भी बनाई है.


लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि इन तिकड़ियों ने बड़ी टीमों के खिलाफ ऐसा प्रदर्शन कभी नहीं किया जिससे खुशी की अलग अनभूति होती हो. इनका प्रदर्शन भारत में ज्यादा और विदेशों में कम देखने को मिलता है. भारत के स्लो पिचों पर बल्लेबाजी करके अपने रिकोर्ड में सुधार करके भारत के दर्शक और मीडिया के सामने हिरों बन जाते हैं लेकिन उससे भारतीय टीम को कुछ खास फायदा नहीं होता. अगर हम रिकोर्ड में जाए तो भारत का मैच विनिंग प्रदर्शन विश्व की चोटी के टीमों के साथ लचर रहा है. खासकर उनकी जमीन पर तो और खराब प्रदर्शन रहा है. भारतीय टीम को बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ता है.


यह घर के शेर घर में ही हुंकार भर सकते हैं. विदेशी सर्जमी पर इन्हें छठी का दूध याद आ जाता है. इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2011 विश्व कप जिसे भारत ने अपने नाम किया था उसका सबसे ज्यादा योगदान दक्षिण एशिया की पिच का है. यहां पर पिच इस तरह से बनाई जाती है जहां पर बल्लेबाजों की बल्ले-बल्ले होती है और गेन्दबाज फिसड्डी साबित होते हैं.

विदेशों की फास्ट पिचों पर भारतीय टीम घुटने टेकते हुए नजर आती है. उस समय भारत की तिकड़ी भी मजबूर और हताश दिखाई देती है. कभी-कभी विदेशी पिचों पर देखने को मिला है कि भारत के बड़े बल्लेबाज वहां के गेंदबाजों के आगे नस्मस्तक हैं जबकी भारतीय गेंदबाज अच्छी बल्लेबाजी कर रहे होते हैं.


यहां हम केवल तिकड़ी पर पूरा का पूरा दोष थोप नहीं सकते. भारतीय हार के जिम्मेदार भारत के ऑपनर भी है. ऐसा कम ही समय आया है जहां पर इन ऑपनरों ने अच्छी शुरुआत दी हो. इनके खराब प्रदर्शन से टीम के दूसरे खिलाड़ियों पर दबाव बनना स्वभाविक हो जाता है. भारतीय क्रिकेट टीम का हार का सिलसिला इसी तरह बदस्तूर जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब भारतीय टीम को एक हॉकी टीम की तरह जाना जाएगा जो अपने दर्शकों के लिए हर समय मोहताज दिखाई देती है.


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