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भ्रष्टाचारियों के भंवर में सचिन

एक नजर इधर भी
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सचिन को राज्यसभा में मनोनीत किए जाने के मसले पर कई ऐसे बाते हैं जिन पर चर्चा होनी चाहिए, जैसे: क्या सरकार सचिन के नाम का इस्तेमाल अपने पक्ष में करने जा रही है. दूसरा अन्य वरिष्ठ खिलाडियों के रहते हुए खेल में सक्रिय सचिन को मनोनीत को किया जाना एक खतरनाक परंपरा तो नहीं. तीसरा जो कही ज्यादा महत्वपूर्ण वह यह है कि क्या सचिन द्वारा राजनैतिक छल-प्रपंच का शिकार होकर क्रिकेट का परित्याग कर देना उचित है ?

sachinभारत में खेल और राजनीति का चोली-दामन का रिश्ता है. यह इस तरह का गठजोड है जो एक दूसरे को प्रभावित करती हुई दिखती है. आप किसी भी खेल संस्थान पर नजर डाल लीजिए उसका प्रमुख कही न कही राजनीति से जुड़ा हुआ जरूर है. लेकिन लगता है कि क्रिकेट का रिश्ता राजनीति से कुछ ज्यादा ही है. अगर हम भारत के क्रिकेट इतिहास पर नजर डालें तो हम देखेगे कि कई क्रिकेटर राजनीति में हाथ अजमा चुके हैं और कानून बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं. इनमें एक और नाम जुड़ चुका है महान बल्लेबाज सचिन तेन्दुलकर का .


सचिन तेन्दुलकर किसी पहचान के मोहताज नहीं है. उन्होंने अपने व्यवहारिक और चतुराईभरी बल्लेबाजी से विश्वभर में एक पहचान बनाई है. क्रिकेट के रिकॉर्ड का यह बादशाह जब मैदान पर मौजूद होता है तो विरोधियों के लिए चिंता और भारतीयों के लिए खुशी का सबब बन जाता है. वह एकलौते ऐसे बल्लेबाज हैं जो लगातार दो दशक से क्रिकेट की दुनिया में छाए हुए हैं. भारतीय लोग कभी उन्हें क्रिकेट का पर्याय तो कभी क्रिकेट का भगवान के रूप में संबोधित करते हैं.


आज जनता का यही भगवान राजनीति पारी खेलने जा रहा है. राजनीति पार्टी उन्हें महत्व को समझते हुए देश की उपरी सदन में जाने का मौका दिया है. सचिन के कर्तव्यनिष्ठ तथा साफ झवि होने के नाते उनका संसद में जाना कोई हैरान करने वाली बात नही है. आज संसद को सचिन जैसे साफ छवि के लोगों की जरूरत है. लेकिन यहा सवाल उठता है कि क्या सचिन ज्यादा दिन तक अपने आप साफ छवी वाला नेता साबित कर पाएंगे. यह कहना मुश्किल है.


आज सांसद अपने करतूतों की वजह से पूरे देशभर में बदनाम हैं. संसद मे कैसे और किस तरह से कानून बनते है, किस कानून को ज्यादा महत्व दिया जाता है और किस कानून को नहीं यह जग जाहिर है. पिछले कई सालों से संसद अपने मर्यादित रूप में नहीं दिख रहा. हो-हल्ला, उपद्रव, हंगामा संसद के लिए आम शब्द हो गए जो सत्र के दौरान मीडिया में प्रयोग किए जाते हैं. इसके अलावा पूरे देश में भ्रष्ट सांसदों के खिलाफ एक लहर सी है जो समय बीतने के साथ काफी तेज हो चुकी है. इन्हीं सांसदों के साथ संसद में बैठकर सचिन संसद की कार्यवाही में भाग लेंगे. जनहित कानूनों को पास करना या नहीं करना जैसे मुद्दे पर पर राजनीति करते हुए दिखेंगे.


कांग्रेस के आलाकमान सचिन नाम के शब्द को भलीभांति समझते हैं. वह समझते है कि सचिन का वक्त खेल से संन्यास लेने का चुका है. इसलिए वह साचिन के नाम को भुनाना चाहते हैं. वह जानते हैं कि इस समय पूरे देश में उनकी पार्टी के खिलाफ एक जन विरोधी लहर है, भ्रष्टाचारी पार्टी होने का टैग लग चुका है जो मिटाए नहीं मिट रहा तो ऐसे में सचिन उनके लिए वरदान साबित हो सकते हैं. पिछले कई चुनावी परिणाम कांग्रेस लिए नाकारात्मक साबित हुए है और 2014 भी नजदीक आ चुका है ऐसे में अगर हम भविष्य में सचिन तेंदुलकर को कांग्रेस की तरफ से प्रचार करते हुए देखे तो हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए.


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