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भारत बंद: राजनैतिक फायदा या सच्ची निष्ठा

एक नजर इधर भी
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bharat bandhकेन्द्र में कांग्रेस की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अपने पैरों पर कुल्ल्हाडी मारे जाने के लिए जानी जाती है. पहले भी इसने अन्ना हजारे और रामदेव के खिलाफ कार्यवाही करके इसकी मिशाल पेश कर दी थी. हर बार की तरह आज भी वह जनता को महंगाई के खाई में ढकेलने के लिए पेट्रोल, एलपीजी के दामों में भारी बढोत्तरी कर दी. ऐसा लगता है कि कांग्रेस का ध्येय बन चुका है कि देश की जनता को जितना हो सके उन्हे पीडा दें. उनका खून चुसने के लिए जितनी कोशिश की जा सके उतनी की जाए. जबसे इन्होंने सत्ता संभाला है खासकर यूपीए-2 ने जनहित के खिलाफ कानून और योजना बनाना, उनको हर तरफ मंहगाई और गरीबी से बांधे रखना इनका ध्येय बन चुका है.


अपने गलत नीतियों की वजह से कांग्रेस विपक्षी पार्टी को राजनीति करने का मौका दे देती है. पेट्रोल की क़ीमतों में बढ़ोतरी को लेकर विपक्षी दलों ने भारत बंद का जो आह्वान किया है इससे वह जनता की तकलीफ को कम न करके और बढ़ा रहे है. चक्का जाम से देश की आम जनता को ढेरों परेशानियों का सामना करना पड़ता है, इससे आम जनता को अपने ऑफिस जाने, कुछ जरूरी काम निपटाने, परीक्षा देने या फिर किसी गंभीर बीमारी से पीडित होने की अवस्था में हॉस्पीटल जाने संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ता है.


इस तरह के बंद से सरकार झुकने वाली नहीं है क्योंकि वह समझती है कि अगर हमने कीमतों में कटौती कर दी तो विपक्षी पार्टी इसका सारा श्रेय अपने उपर ले लेगी और जनता हमारे खिलाफ हो जाएगी. इतिहास साक्षी है कि राजनीति पार्टी के किसी भी बंद के बाद भी सरकार ने अपनी नीतियों में बदलाव नहीं किया. सरकार को पता है कि यह बंद एक दिन का है इसके बाद विपक्ष भी भूल जाएगा और जनता भी. लेकिन इस एक दिन में अगर किसी को परेशानिया उठानी पड़ती है तो वह है आम जनता. आज पक्ष और विपक्ष एक ही थाली के चट्टे बट्टे हो गए हैं. एक गलत नीतिया बनाता है और दूसरा गलत नीतियों को भुनाने के फिराक में रहता है.


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